किनोवा की कृषि हेतु तकरीबन समस्त मृदा अनुकूल मानी जाती हैं। परंतु, किसान भाई यह अवश्य ध्यान रखें कि भूमि अच्छी जल निकासी वाली होनी अनिवार्य है। साथ ही, भूमि के पीएच मान का सामान्य होना अत्यंत आवश्यक है। भारत में किनोवा का उत्पादन रबी सीजन में किया जाता है।
कौन-सा समय किनोवा की बुवाई के लिए अच्छा माना जाता है
भारत की जलवायु के अनुरूप बीजों की बुआई नवम्बर से मार्च की समयावधि में करनी चाहिए। हालाँकि, विभिन्न स्थानों पर इसकी कृषि जून से जुलाई के माह में भी की जा सकती है।
किनोवा की खेती से पहले बीजों की मात्रा एवं बीज उपचार
अगर हम बात करें किनोवा की खेती के लिए प्रति एकड़ कितने बीज की आवश्यकता होती है। तो आपको बतादें कि किनोवा की खेती के लिए तकरीबन 1 से 1.5 किलो बीज की आवश्यकता होती है। बीजों की रोपाई से पूर्व बीज उपचार करना बेहद जरुरी होता है। बीज उपचारित होने से अंकुरण के वक्त कोई दिक्कत नहीं होती एवं फसल भी रोग मुक्त हो जाती है। किनोवा की बुआई से पूर्व बीज को गाय के मूत्र में 24 घंटे हेतु डालकर उपचारित करना आवश्यक है।
कृषि शिक्षा को एक नई दिशा देनी की बेहद आवश्यकता है
राज्यपाल ने बताया कि यह दौर विवेकपूर्ण कृषि का है। आपको बतादें कि बदलते समय में रोबोटिक्स, बिग डाटा एनालिटिक्स, रिमोट सेन्सिंग, आईओटी एवं आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस ने कृषि क्षेत्र में एक नई क्रांति का स्वागत किया है। उन्होंने बताया है, कि कृषि विश्वविद्यालयों को स्मार्ट कृषि से संबंधित नई तकनीकों के लिए किसान भाइयों को जागरूक किया जाएगा। मिश्र ने बताया है, कि खराब होते मौसमिक तंत्र, जैव विविधता पर चुनौती एवं सिंचाई के साधनों के अभाव के संबंध में बेहतर सोच रखी है। कृषि शिक्षा को नई दिशा देनी की बेहद आवश्यकता है।
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विद्यार्थियों को स्वर्ण पदक से सम्मानित किया गया है
राज्यपाल जी ने प्राकृतिक आपदा बारिश एवं ओलावृष्टि से कृषि पर पड़ रहे दुष्प्रभावों की ओर संकेत करते हुए कृषि विज्ञान केन्द्रों के अंतर्गत जलवायु बदलाव का विस्तृत अध्ययन किए जाने की राय दी गई है। राज्यपाल ने बताया है, कि कृषि पद्धतियों के पुराने एवं नए ज्ञान का बेहतर उपयोग करते हुए किसान भाइयों के लिए प्रभावी पद्धतियां तैयार करने की जरूरत है, जिससे कि कृषि पैदावार में वृद्धि, खाद्य सुरक्षा के लिए खाद्य उत्पादन एवं भंडारण, पर्याप्त पोषण युक्त खाद्य मुहैय्या कराने के वांछित लक्ष्यों को हाँसिल किया जा सके। इस उपलक्ष्य पर 3 विद्यार्थियों को समेकित कृषि स्नातकोत्तर उपाधियां, 985 विद्यार्थियों को कृषि स्नातक उपाधियां, 32 विद्यार्थियों को पीएचडी, 75 को स्नातकोत्तर तथा आठ विद्यार्थियों को स्वर्ण पदक प्रदान किए गए।
संयुक्त राष्ट्र ने 2023 को मोटा अनाज दिवस के रूप में मनाया है
आपको हम बतादें कि भारत सरकार के निवेदन पर संयुक्त राष्ट्र द्वारा 2023 को मोटा अनाज वर्ष की घोषणा की गई है। साथ ही, केंद्र सरकार भी भारत के अंदर मोटे अनाज की किस्मों की खेती को प्रोत्साहन देना चाहती है। इसके लिए वह किसान भाइयों को प्रेरित कर रही है। विगत माह मोटे अनाज की कृषि को बढ़ावा देने के लिए संसद भवन के अंदर बाजरे से निर्मित व्यंजन प्रस्तुत किया गया था। जिसका पीएम मोदी सहित अन्य मंत्रियों एवं सांसदों ने भी स्वाद चखा था।
केंद्र सरकार भी एक बार फिर से मोटे अनाज की खेती के लिए पूरे देश भर में किसानों को प्रोत्साहित कर रही है और बहुत जगह पर मोटे अनाज के बीज किसानों को मुफ्त में मुहैया करवाए जा रहे हैं. साथ इससे जुड़ी हुई कई तरह की स्कीम भी केंद्र सरकार लागू करने में लगी हुई है.
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कोर्णाक आर्मी लोगों को समझ में आ गया कि मोटे अनाज में रोगों से लड़ने की क्षमता बहुत ज्यादा है और अपने भोजन में इनका सेवन करना बेहद जरूरी है. इसके अलावा किसानों के पक्ष से देखा जाए तो इस अंदाज में सिंचाई के लिए ज्यादा पानी की जरूरत भी नहीं पड़ती है इसलिए बुंदेलखंड राज्य इसके लिए एकदम सही है. यहां पर किसान फूड प्रोसेसिंग करके अपनी आमदनी में अच्छा-खासा इजाफा कर सकते हैं. कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय में आनुवांशिकी एवं पादप प्रजनन विभाग के प्राध्यापक डा.कमालुद्दीन ने भी माना है कि मोटे अनाज की खेती बुंदेलखंड के किसानों के लिए एक नई क्रांति लेकर आएगी और इससे उनकी आमदनी में अच्छा खासा मुनाफा होने वाला है.
मीडिया एजेंसियों के अनुसार, गया जनपद में कृषकों को मडुआ की खेती के लिए बढ़ावा दिया जा रहा है। बतादें, कि वर्तमान में किसान गया जिले में मडुआ के साथ- साथ चीना फसल का भी उत्पादन करेंगे। विशेष बात यह है, कि कृषि विभाग कृषकों से जनपद में पांच हेक्टेयर भूमि में चीना की खेती कराएगी, जिससे कि इसके बीज को कृषकों को बीज वितरित किया जा सके।
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चीना को किस रूप में बनाकर सेवन किया जाता है
चीना की फसल मोटे अनाज की श्रेणी में आने वाली फसल है। चीना की खेती ऊसर भूमि, बलुई मृदा और ऊँचे खेत में भी सहजता से की जा सकती है। चीना की सबसे बड़ी विशेषता यह है, कि यह एक असिंचित श्रेणी की फसल है। चीना की खेती में बारिश से ही सिंचाई की आवश्यकता पूर्ण हो जाती है। अगर हम इसके अंदर मौजूद पोषक तत्वों की बात करें तो इसके अंदर फाइबर समेत विभिन्न पोषक तत्व भरपूर मात्रा उपलब्ध होते हैं। इतना ही नहीं चीना का सेवन करने वाले लोगों को मधुमेह और ब्लड़ प्रेशर जैसे रोगों से राहत मिलती है। चीना का उपयोग भात, रोटी और खीर निर्मित कर खाया जाता है।
यहां किए जा रहे चीना के बीज तैयार
कृषि जानकारों के मुताबिक, गया जनपद में आवश्यकतानुसार एवं समयानुसार बारिश ना होने की स्थिति में कई बार किसान काफी जमीन पर धान की रोपाई नहीं करते हैं। अब ऐसी स्थिति में किसान भाई जल की कमी के चलते खाली पड़ी ऐसी भूमि पर चीना की खेती कर सकते हैं। विशेष बात यह है, कि चीना की फसल 2 महीने के अंदर ही पककर तैयार हो जाती है। अब ऐसी स्थिति में इसकी खेती से किसान भाई हानि की भरपाई कर सकते हैं। इस वर्ष टनकुप्पा प्रखंड के मायापुर फार्म के अंतर्गत भी चीना के बीज तैयार किए जा रहे हैं।
सामान्य तौर पर रबी सीजन की बुवाई का कार्य अक्टूबर से लेकर नवंबर तक किया जाता है। परंतु, उससे पूर्व किसान अपने खेतों में मिट्टी की जांच और संरक्षित खेती की तैयारी जैसे आवश्यक कार्य कर सकते हैं। इसके उपरांत मृदा स्वास्थ्य कार्ड के अनुसार, खेतों में अनाज, दलहन, तिलहन, चारे वाली फसलें, जड़ और कंद वाली फसलें, सब्जी वाली फसलें, शर्करा वाली फसलें एवं मसाले वाली फसलों की खेती की जा सकती है।
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रबी सीजन की प्रमुख अनाज फसलें
रबी सीजन की प्रमुख नकदी और अनाज वाली फसलों में गेहूं, जौ, जई आदि शम्मिलित हैं। किसान भाई इन फसलों की खेती बड़े पैमाने पर करते हैं।
रबी सीजन की दलहनी फसलें
रबी सीजन की प्रमुख दलहनी फसलें प्रोटीन से युक्त होती हैं। इसका प्रत्येक दाना किसानों को अच्छी आमदनी दिलाने में सहायता करता है। इन फसलों में चना, मटर, मसूर, खेसारी इत्यादि दालें शम्मिलित हैं।
रबी सीजन की तिलहनी फसलें
तिहलनी फसलें तेल उत्पादन के मकसद से पैदा की जाती हैं, जिनसे किसानों को काफी अच्छी आमदनी होती है। रबी सीजन की प्रमुख तिलहनी फसलों में सरसों, राई, अलसी, तोरिया, सूरजमुखी की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है।
रबी सीजन की चारा फसलें
पशुओं के लिए प्रत्येक सीजन में पशु चारे का इंतजाम होता रहे। इसी मकसद से चारा फसलों की बुवाई की जाती है। रबी सीजन की इन चारा फसलों में बरसीम, जई और मक्का का नाम शम्मिलित है।
रबी सीजन की मसाला फसलें
रबी सीजन के अंतर्गत कुछ मसालों की भी खेती बड़े पैमाने पर की जाती है। इनमें मंगरैल, धनियाँ, लहसुन, मिर्च, जीरा, सौंफ, अजवाइन आदि सब्जियां शम्मिलित हैं।
रबी सीजन की प्रमुख सब्जी फसलें
अधिकांश किसान पारंपरिक फसलों को छोड़कर बागवानी फसलों की खेती करते हैं। विशेष रूप से बात करें सब्जी फसलों की तो यह कम समय में ज्यादा मुनाफा देती हैं। रबी सीजन की प्रमुख सब्जी फसलों में लौकी, करेला, सेम, बण्डा, फूलगोभी, पातगोभी, गाठगोभी, मूली, गाजर, शलजम, मटर, चुकन्दर, पालक, मेंथी, प्याज, आलू, शकरकंद, टमाटर, बैगन, भिन्डी, आलू और तोरिया आदि फसलें उगाई जाती हैं।